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Showing posts from June, 2023

Dastan-e-gardis

दास्तान-ए-गर्दिश में खामोश मेरी जुबानी है... (Dastaan-e-gardish mein khamosh meri jubani hai...) है सब मौन, फिर भी गूंजती एक वाणी है... (Hai sab maun, fir bhi gunjati ek vani hai...) जोग कर जिसे पिरोया हमने... (Jog kar jise piroya hamne...) ये उन्हीं टूटे ख़्वाबों की मेहरबानी है...! (Ye unhi tutte khwabon ki mehrbani hai...!) पूछती है ये नफ़सी हवा (मुझसे)... (Puchhti hai ye nafsi hawa (mujhse)...) करके इश्क़ क्या संजोया तूने... (Karke ishq kya sanjoya tune...) बांध कर तमन्ना-ए-महफ़िल... (Bandh kar tamanna-e-mehfil...) क्या ही खोया तूने...? (Kya hi khoya tune...?) जो मालूम तुझे, एक हीर-रांझे की कहानी है...! (Jo maloom tujhe, ek Odysseus ki kahani hai...!) है कुछ नहीं, तेरी कल्पनाओं की दास्तानी है...! (Hai kuch nahi, teri kalpanao ki dastaani hai...!) जो आज खामो...

Are dubenge to kya paar na jaenge?

अरे डूबेंगे तो क्या पार न जाएंगे? पूछना है तो ये पूछ कि क्या लाएंगे... न होंगी सांसें तो क्या... सांसों का सार लाएंगे... तुम्हें पाने की ज़िद... और उस ज़िद का अंजाम लाएंगे... किसी ने कहा कि मरकर हम क्या पाएंगे... जो जीकर न कर सके, क्या वो कर पाएंगे...? हमने भी हंसकर कह दिया... मुसाफ़िर हैं इश्क़ के राहों के... न कुछ पा सके तो भी अंजाम-ए-मोहब्बत पाएंगे! Are dubenge to kya paar na jaayenge? Puchhna hai to ye puchh ki kya laayenge... Na hongi saansein to kya... Sanso ka saar laayenge... Tumhe paane ki zid... Aur us zid ka anjaam laayenge... Kisi ne kaha ki mar kar hum kya paayenge... Jo jee kar na kar sake, kya wo kar paayenge...? Humne bhi has kar kah...

Sayar kuchh khas nahi mai

शायर कुछ खास नहीं मैं... कभी लिखता हूँ, कभी छोड़ देता हूँ... निकलता हूँ तलाश में खुद की... और कभी खुद से ही मुँह मोड़ लेता हूँ। एक दिन सोचा लिखूंगा हाल इस गुलशन का... पर कुछ रास नहीं आया... खिले थे चेहरे सब... पर थी एक अजीब सी माया। कहा स्वयं ने, “ना तलाश...” पर मैं भी कहाँ रोक पाया... जो टकराया एक दर्पण से तो जाना, चेहरे कहाँ, जग बस है मुखौटों का साया। क्या ही लिखूँ अब... कलम भी अपनी मैं तोड़ आया... निकला था तलाशने खुद को... और एक अजनबी मैं ढूँढ आया! Shayar kuchh khaas nahi main... Kabhi likhta hoon, kabhi chhod deta hoon... Nikalta hoon talaash mein khud ki... Aur kabhi khud se hi muh mod leta hoon. Ek din socha likhunga haal is gulshan k...